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संत हिरदाराम नगर :- सेवा सदन नेत्र चिकित्सालय परहमहंस संत हिरदाराम साहिब जी का जीवन परिचय.....

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संत हिरदाराम नगर :- सेवा सदन नेत्र चिकित्सालय परहमहंस संत हिरदाराम साहिब जी का जीवन परिचय.....

परहमहंस संत हिरदाराम साहिब जी का जन्म अविभाजित भारत के सिंध प्रांत के एक छोटे से गांव बहिनन में दिनांक 21 सितम्बर 1906 को हुआ था। उनका पूरा परिवार प्रभु भक्ति और सेवा-सिमरन जैसे आध्यात्मिक कार्यो में लगा हुआ था। घर का जो वातावरण था, उसका असर बाल्यकाल में संत जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर पड़ा। परमहंस संत हिरदाराम साहिब जी देष के विभाजन के बाद अजमेर के पास पुष्कर तीर्थ स्थल पर रहने के लिये आ गये। उन्हांेने अपना दूूसरा आश्रम भोपाल के पास बैरागढ़ मे बनवा लिया।
बैरागढ़ मे उनके षिष्यों की बड़ी संख्या होने के कारण उन्हांेने इस उपनगर में बड़े पैमाने पर सेवा और सहायता के कार्य शुरू किये, जिसका सीधा लाभ निचले तबके और मध्यम वर्गीय परिवारों को मिला। बैरागढ़ में उनके दर्षनों के लिए आने वाले लोगों को वे ये कहते थे कि परिवार में सुख, षांति और समृद्वि के लिए व्यक्ति को अपने आचरण को साफ सुथरा रखना चाहिए। दुराचारी व्यक्ति के जीवन में कभी सुख, षांति और समृद्वि नहीं आती। परमहंस संत हिरदाराम साहिब जी ने अपने जीवन काल में कभी भी मंदिर-मढ़ियां नहीं बनवाई। वे कहते थे कि दीन हीन बेसहारांे की सेवा ही प्रभु भक्ति है। संतजी अपनी कुटिया में आने वाले धनाडय लोगों को दान की ओर अपना ध्यान देने की बात करते थे। उनका मानना था कि दान देने से धन बढ़ता है इसलिए समय और जरूरत के मुताबिक यथाषक्ति जरूरतमंद लोगों की मदद करना चाहिए। परमहंस संत हिरदाराम साहिबजी का उनके सेवा कार्यों का सूत्र वाक्य था, उसमें कहा गया है कि 

बूढे़, बच्चे और बीमार, हैं परमेष्वर के यार

करें भावना से उनकी सेवाः पाएंगे लोक-परलोक में सुख अपार

उनके सेवा कार्यो के केंद्र में बूढे़, बच्चे और बीमार लोग ही हुआ करते थे। उन्हांेने महिला साक्षरता और स्वास्थ्य के प्रकल्पों में सेवा और सहायता के काम षुरू करवाये। चार दषक पहले बैरागढ़ में पीने के पानी की बड़ी तकलीफ थी। षासकीय पेयजल आपूर्ति योजना से उपनगर की आबादी को पर्याप्त पेयजल की आपूर्ति न होने के कारण उन्हांेने यहां चार ट्यूबवेल खुदवाये और पाइप लाइन बिछवाकर उपनगर की गली-गली में दो-दो नल लगावाये और स्थानीय लोगों को उनकी आवष्यकता के अनुसार पर्याप्त जल की आपूर्ति की गई। षासकीय अस्पताल की जर्जर अवस्था के कारण लोगों को स्वास्थ्य सुविधाओं का समुचित लाभ नहीं मिल पाता था। संतजी ने इस बात का कभी भेद नहीं किया कि कोई प्रकल्प यदि षासन द्वारा संचालित है तो उसमें मदद नहीं की जाये। उन्होनेे संत हिरदाराम नगर के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के भवन को बनवाने के लिए उनके श्रद्धालु दानदाताओं से काफी धन राषि दिलवाई और संतजी के अनुयायियों के प्रयासों से वह सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र अब सिविल अस्पताल का दर्जा प्राप्त कर चुका है। सरकारी अस्पताल में अब विभिन्न स्पेषयलिटी के विषेषज्ञ डॉक्टरों की सेवाएं सुलभ हैं। अब सरकारी अस्पताल से बैरागढ़ ही नहीं आस-पास के करीब 50 गांवों के लोग आकर अपना इलाज करवाते हैं।    भोपाल गैस त्रासदी के बाद संतजी ने राजधानी में नेत्र चिकित्सा की समुचित व्यवस्था ना होने के कारण लोग अपनी आंखों का इलाज करवाने के लिए दिल्ली, मंुबई जैसे षहरों में जाने लगे और इससे लोगों को बहुत ही असुविधाओं का सामना करना पड़ता था। इन स्थितियों को देखते हुए संतजी ने बहुत छोटे पैमाने पर ग्रामीण अंचलों में निःषुल्क नेत्र रोग जांच और मोतियंाबिद ऑपरेषन षिविर लगाना षुरू किए और उन्हीं दिनों में बैरागढ़ की सिविल अस्पताल के पीछे एक छोटा सा रिहायषी मकान खरीदकर वहंा सेवा सदन नेत्र चिकित्सालय की स्थापना की गई। यह अस्पताल अब विषाल स्वरूप ले रहा है। विगत 38 वर्षो में इस अस्तपाल द्वारा भोपाल सहित आस पास के 10 जिलों के 38 लाख से भी अधिक लोगों की आंखो का इलाज किया गया है। इसके अलावा 4500 से ज्यादा निःषुल्क षिविर लगाकर 3.62 लाख लोगों की आंखों के सफल ऑपरेषन किए गए हैं। सेवा सदन अस्पताल में बढ़ती मरीजों की संख्या को देखते हुए अब भोपाल षहर की 200 क़िमी की परिधि में 39 विजन सेंटर स्थापित किए गए हैं। अब षिविर लगाने के बजाए इन विजन सेंटर्स में आने वाले लोगों को सेवा सदन की एंबुलेंस से ऑपरेषन करवाने के लिए बैरागढ़ भेजा जाने लगा है। बैरागढ़ में अस्पताल के आसपास बहुत अधिक दुकानें बन जाने और व्यवसायिक गतिविधियां बढ़ जाने के कारण नेत्र रोगियों को आने जाने में बड़ी दिक्कत होती है अतः एयरपोर्ट रोड पर 1.30 लाख वर्गफुट क्षेत्रफल में नया अस्पताल बनवाया गया है जो भोपाल ही नहीं आसपास की 10 जिलों की 1.86 करोड़ आबादी को नेत्र सुरक्षा सेवाएं दे सकेगा।    परमहंस संत हिरदाराम साहिब जी के सेवा कार्यो को देखते हुए मध्यप्रदेष सरकार के संकल्प पर केंद्र सरकार ने इस उपनगर और रेलवे स्टेषन का नाम बैरागढ़ से बदलकर संत हिरदाराम नगर कर दिया है। संतजी ने जब 1964 से संतनगर में अपने सेवा कार्यो की षुरूआत की तब उपनगर के 80 प्रतिषत परिवार मांसाहारी थे। संतजी ने एक अभियान चलाकर उपनगर के लोगों को प्रतिदिन पक्षियों को दाना पानी देने की सीख दी। परिणाम स्वरूप लोगों का विवेक जाग्रत हुआ। लोगों को लगा वे जिन पक्षियों का पोषण करते हैं, उनका भक्षण कैसे करें ? यह एक मौन जन आंदोलन था, अब यह कहने में कोई अतिष्योक्ति न होगी कि इस उपनगर के 80 प्रतिषत से अधिक परिवार षाकाहारी हो गए हैं। संतजी ने सीधी षिक्षा देने के बजाए लोगों के कार्य व्यवहार और आचरण में बदलाव करके उनमें चारित्रिक और नैतिक मूल्यों का संचरण करने के प्रयत्न किए।    परमहंस संत हिरदाराम साहिब जी ने कम्युनिटी हाल के पीछे के एक जीर्ण षीर्ण षासकीय षाला भवन को नन्हे-मुन्ने बच्चों के जोखिम में अध्यन अध्यापन करने की विवषता को भांपते हुए एक दान दाता को नया स्कूल बनवाकर देने के लिए कहा। उस दान दाता ने सरकारी स्कूल को नए सिरे से बनवाकर दिया अब यहंा प्रतिदिन 1000 हजार से ज्यादा गरीब परिवारों के बच्चे अध्यनरत हैं। इस स्कूल का नाम जसलोक षासकीय प्राथमिक विद्यालय दिया गया है।संतजी ने समाज में लोगों को गलत खान पान के कारण मोटापा बढ़ने की षिकायत और उसकी वजह से होने वाली बीमारियों से बचाने के लिए संतनगर में एक प्राकृतिक चिकित्सा केंद्र की स्थापना करवाई। जनवरी 1989 से षुरू हुए इस प्राकृतिक चिकित्सा केंद्र में अब तक लाखों लोग षारीरिक सौष्ठव प्राप्त कर चुके हैं। संतजी ने लोगों को आध्यात्मिकता से जोड़ने के लिए दिसंबर माह में प्रतिवर्ष अखंड रामधुन का आयोजन कराना षुरू किया। इस रामधुन आयोजन में दिन के समय महिलाएं तथा रात्रि में पुरूषों द्वारा बिना रूके 168 घंटे तक रामधुन लगाई जाती है। इस रामधुन की इतनी जनग्राहयता बढ़ी है कि अब विदेषों में स्थित संतजी के अनुयायी भी दिसंबर में संतनगर आकर इस रामधुन में भाग लेते हैं। वर्ष 1992 में संतजी को बताया गया कि उपनगर में एक भी कन्या महाविद्यालय नहीं है। संत जी ने युवतियों की इस तकलीफ को समझा और उपनगर के ही कुछ समर्थ अभिभावकों को दान राषि संग्रहित कर महाविद्यालय बनाने की योजना रखी। उस समय बाबूलाल गौर स्थानीय षासन मंत्री थे। उन्होनें नेहरू क्लाथ मार्केट के पीछे मांस की दुकानों को हटवाकर वह जमीन कन्या महाविद्यालय के लिए आवंटित करवा दी और एक साल के अंदर ही कालेज षुरू हो गया। अब न केवल संतनगर बल्कि आस पास के गांवो की भी युवतियां, महाविद्यालयीन षिक्षा अर्जित करने के लिए इस कालेज में आने लगी हैं। कालेज का नाम पं. दीनदयाल उपाध्याय कन्या महाविद्यालय रखा गया है।संत हिरदाराम साहिब जी ने वर्ष 1978 में निर्धन परिवारों के मेधावी बच्चों को अध्यन में होने वाली आर्थिक तंगी को दूर करने के लिए नवयुवक परिषद की स्थापना करवाई। संतजी के अनुयायी सेवादारों ने परिषद की कक्षाओं में निर्धन परिवारों के मेधावी बच्चों को प्रातः और संध्याकाल में कोचिंग क्लासेस लगवाकर पढ़ाई लिखाई में मदद करना षुरू किया। परिणाम स्वरूप अब प्रतिवर्ष 2000 से ज्यादा गरीब बच्चों को आर्थिक सहायता दी जाती है। यह सहायता उन्हें कापी किताब, षिक्षण षुल्क और यूनिफार्म आदि खरीदने के लिए दी जाती है। ज्ञातव्य है कि नवयुवक परिषद से निकले बच्चे इंजीनियर, डॉक्टर, सिविल सेवक, बैंक कर्मचारी तथा राज्य और कंेद्र सरकार के विभागों में लाभप्रद पदों पर सेवारत हैं।परमहंस संत हिरदाराम साहिब जी ने उपनगर की युवतियों में विवाह के पूर्व सुसंस्कार प्रस्सफुटित करने के लिए मंजु संस्कार केंद्र की स्थापना की। इस केंद्र में युवतियों को धार्मिक पुस्तकों यथा गीता, रामायण, गुरू गं्रथ साहिब का पठन पाठन, स्वादिष्ट भोजन बनाने की विधियां, सास ससुर, जेठ जेठानी और अपने जीवन साथी तथा ससुराल के अन्य सदस्यों के साथ सौह्रादपूर्ण संबंध बनाने के तौर तरीके सिखाए समझाए जाते हैं। इसके अलावा निर्धन विद्यार्थी को षैक्षणिक सत्र में आवष्यक अतिरिक्त पुस्तकों के लिए नीतू मेहतानी पुस्तकालय की स्थापना की गई है। इस पुस्तकालय में विद्यार्थियों को रोजगार के लिए इंटरव्यू आदि में मदद करने वाली सहायक अध्यन सामग्री की पुस्तकें भी उपलब्ध कराई जाती हैं। रोजगार की तलाष में लगे हुए युवक युवतियों को कम्प्यूटर ट्रेनिंग, टाईपिंग, सिलाई सीखने, बढईगिरी, लोहारी आदि जैसे औद्योगिक प्रषिक्षण के लिए भगवान कलां केंद्र की स्थापना की गई है। भगवान कलां केंद्र विगत 30 वर्षों से अधिक समय से संचालित है।संतजी ने महिला साक्षरता में विषेष ध्यान दिया। संत हिरदाराम नगर, गांधीनगर और करोंद चौराहे पर संतजी के षिष्यों द्वारा संचालित 18 विद्यालय महाविद्यालयों में 13 हजार से अधिक बच्चे प्रतिवर्ष लाभांवित हो रहे हैं। एक आध्यात्मिक गुरू जिन्होंने लोक सेवा को ही प्रभु सेवा माना के कारण आज उपनगर और आस पास के गांवांे की लगभग ढाई लाख आबादी को संतजी के सेवा प्रकल्पो से लाभ मिल रहा है। ऐसे सिद्ध पुरूष और समर्थ गुरू संत हिरदाराम साहिब जी के श्रीचरणों में षत-षत नमन।आलेख- सुरेष आवतरामानी



   

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