728x90 AdSpace

Latest News

संत हिरदाराम नगर :- सादगी और मानवता के अवतार- संत हिरदाराम साहिब....

AJAY CHOUKSEY M 9893323269 

संत हिरदाराम नगर :- सादगी और मानवता के अवतार- संत हिरदाराम साहिब....

भारत भूमि संतों की तपोभूमि रही है। हर युग में यहां ऐसे संतों ने जन्म लिया है जिनके पदार्पण से भारत-भूमि पवित्रता के नये आयाम छूती रही है। आज के सर्व सुख-सुविधा का उपयोग कर दूसरों को सादगी से जीवन व्‍यतीत करने के उपदेश देने वाले लोगों के बीच आज से मात्र अठारह वर्ष पहले तक हमारे बीच में एक ऐसे संत सशरीर मौजूद थे जिनकी कथनी और आचरण में लेश मात्र भी अंतर नहीं था, वे कभी शास्त्रों के ज्ञान की बातें नहीं करते थे, सदैव आजमाये हुए वचनों / कसौटियों से जीवंत उदाहरण देते थे। उनके आशीर्वाद से लोगों की सुख सुविधा के लिये करोड़ों रुपये के कार्य संचालित होते थे परन्तु वे स्वयं सादा फ़क़ीरी जीवन व्यतीत करते थे। लकड़ी के बने तख़्त पर सोते थे, अपने गुरू की आज्ञा से धारण किये हुए गेरूआ रंग के सूती व सादे वस्‍त्र धारण करते थे। उनकी कुटिया का रंग ही निराला था, दीवारों पर प्लास्टर तक नहीं किया हुआ था। पूरी कुटिया आम, नीम के वृक्षों तथा तुलसी के पौधों से आच्‍छादित थी। कुटिया के बाहर चारों ओर मेंहंदी की दीवार और फर्श एकदम साधारण।सालों साल एक ही जोड़ी जूते। कपड़े फट जाते तो खुद ही सीते। अपने सभी कार्य अपने हाथों से ही करते थे, हालांकि कुटिया में सेवाधारियों की कमी नहीं थी। स्वास्थ्य ठीक होते हुए भी स्वादपूर्ण पदार्थों- शक्कर, नमक, मिर्च, खटाई आदि से दूर रहते थे। भोजन में अधिकतर लौकी की सब्जी उपयोग में लाते। करेला, तुरई, टिंडे आदि सब्जियां भी उबाल कर बिना तेल, नमक के उपयोग करते, स्वाद इंद्रियों पर पूर्ण नियंत्रण। तुलसी व नीम के पत्ते चबाते तथा उनका रस पीते ऐसे संत हिरदाराम जी का जन्म आहूजा परिवार में 21 सितम्बर 1906 को अविभाजित भारत के सिन्ध प्रांत की रियासत खैरपुर के तालुका फैजगंज के बिहिणन नामक एक छोटे कस्बे में पिता सहिजराम आहूजा और माता रोचलबाई के घर हुआ। जन्म के समय संत पुरुष भाई हरीराम ने भविष्यवाणी की यह बालक बड़ा होकर एक त्यागी संत सिद्ध पुरुष होगा और उन्होंने उसका नाम रखा ‘राम’। 14 वर्ष की आयु में वर्ष 1919 में उनको साईं हरीराम जी के रूप में पूर्ण गुरू की प्राप्ति हुई और गुरूजी की असीम कृपा व आशीर्वाद से उनका मन प्रभु भक्ति में रमने लगा।संतजी कहते थे कि सांसारिक बैंक तो किसी समय बंद भी हो सकते हैं लेकिन भगवान का बैंक ऐसा है कि उनसे जब, जितना, जहां चाहो मिल जाएगा केवल निःस्वार्थ भाव और पवित्र उद्देश्य की आवश्यकता है। दिन के 24 घंटे में से वे 23 घंटे प्रभु की भक्ति में लीन रहते, मात्र एक घंटा प्रात: 9.00 से 10.00 तक संसारी लोगों से मिलने के लिये देते थे। उस अवधि में भी वे ऐसे केवल लोगों से मिलना पसंद करते थे जो प्रभु के मार्ग की ओर प्रशस्त होना चाहते हों, पी‍‍ड़ित मानवता की सेवा कार्य में लगना चाहते हों।सेवा व सिमरन करते-करते अनजाने में उनमें बहुत सारी चमत्‍कारिक शक्तियाँ आ गई थीं परंतु वे उनका प्रदर्शन नहीं करते थे क्‍योंकि उनके गुरूजी ने उनको शिक्षा दी थी कि ‘‘करामात क़यामत का घर होता है, प्रभु की क़ुदरत में हाथ डालना पाप का कार्य होता है, इसलिए ऐसा नहीं करना चाहिये।’अपने समय के देश के शायद ऐसे अकेले संत महापुरुष थे जो अपना संदेश प्रवचनों के बजाय अपने कर्म से देते थे। मानव सेवा के लिये प्रेरित करने के लिये वे जो कुछ अपने शिष्यों को जो संदेश देना चाहते थे वह स्वयं वैसा व्यवहार में करके देते थे।उनके जाप मंत्र थे- ‘सबका भला करो भगवान', ' सुख चाहो तो सुख दो’। यहां तक कि पशु-पक्षियों से भी बहुत प्यार करते थे, हर जीव को प्रेरित करते थे कि अपनी छतों पर इन निरीह प्राणियों के लिये अन्न जल की व्यवस्था करें। जो भी उनसे मिलने आता तो वे यही कहते ‘’मुझसे मिलकर क्‍या होगा ? प्रभु के दर्शन करना चाहते हो और पाना चाहते हो तो बच्चों, बुर्ज़ुगों, मरीज़ो, निर्धनों, और अपंगों की सेवा करो। ‘‘बच्चे, बूढ़े और बीमार हैं परमेश्वर के यार, भावना से करो इनकी सेवा, पाओगे लोक परलोक में सुख अपार।’’ स्वामीजी के आशीर्वाद से संचालित समस्त गतिविधियां इसी मूलमंत्र के इर्द गिर्द हैं।बच्चों में संस्कारों रोपण के प्रति संतजी सजग थे वे कहते यदि आप चाहते हैं कि आपके बच्चे संस्कारी हों, ज्ञानवान हों, बुद्धिमान हों, आज्ञाकारी हों तो उन्हें अपना समय दीजिये, संस्कार दीजिये, प्यार दीजिये। दिन-रात धन कमाने में न गुज़ारिये क्यों कि धन कमाते-कमाते जब आप रूकेंगे तो देर हो चुकी होगी, फिर अपना सारा कमाया धन परिवार पर लगाएंगे तो भी परिवार की खुशियां नहीं लौटेंगी। आपने बच्चों के लिये धन-सम्‍पदा जोड़ ली और संस्कार नहीं दिये तो समझो आपने उनकी जि़ंदगी बिगाड़ने का पूरा सामान तैयार कर लिया। बच्चों को बचपन से ही ढालिये, निखारिये, संवारिये, समझाइये। नारियल के माफिक रहिये, ऊपर से सख़्त और अंदर से नरम। उन्हें अनुशासन में तो रखें, परन्तु प्यार भी दें। कुम्हार की तरह ठोकिये भी सहलाइये भी।आज उनके आशीर्वाद से बच्चे, बूढ़े, बीमार और अन्‍य पीड़ित मानवता की सेवा के कार्य न केवल भोपाल वरन् देश-विदेश के कई शहरों – अजमेर, जयपुर, अहमदाबाद, इन्‍दौर, उल्‍हासनगर, आदि में चल रहे हैं। जिस तरह संत ज्ञानेश्‍वर ने आसंदी को, स्वामी एकनाथजी ने पैठण को, साईं बाबाजी ने शिर्डी को पावन किया उसी तरह संत हिरदारामजी ने अपने चरणों से संत हिरदाराम नगर (बैरागढ़), भोपाल और पुष्कर (अजमेर) को पावन किया।

  • Blogger Comments
  • Facebook Comments

0 Comments:

Post a Comment

Item Reviewed: संत हिरदाराम नगर :- सादगी और मानवता के अवतार- संत हिरदाराम साहिब.... Rating: 5 Reviewed By: mpcgnews.com