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संत हिरदाराम नगर :- ग्रीष्म ऋत में निरीह पाु-पक्षियों हेतु विद्यार्थियों द्वारा दाना-पानी उपलब्ध कराने हेतु जागरूकता-सत्र का आयोजन
ब्रह्मलीन परमहंस संत हिरदाराम साहिब के आशीष एवं संस्थान प्रेरणापुरुष परम श्रद्धेय सिद्ध भाऊ की छत्र-छाया तथा संस्थान उपाध्यक्ष हीरो ज्ञानचंदानी, संस्थान सचिव ए.सी. साधवानी, सहसचिव के.एल रामनानी, विद्यालय प्राचार्य डॉ अजयकांत शर्मा, उपप्राचार्या रीटा गुरबानी, के सहयोग से दिनांक 25 अप्रैल को मिठी गोबिंदराम पब्लिक स्कूल में बढ़ते तापमान मंे निरीह पशु-पक्षियों के प्रति सेवा भाव लाने के महत्व को समझाने हेतु जागरूकता-सत्र का आयोजन प्रातः असेम्बली के दौरान किया गया। सत्र को सम्बोधित करते हुए परम श्रद्धेय सिद्ध भाऊ ने मूक पक्षियों को दाना-पानी देने के पीछे के मनोविज्ञान पर प्रकाश डालते हुए कहा कि स्वयं का पेट भरने से पहले रात भर के भूखे-प्यासे पशु-पक्षियों को दानापानी दें, जिससे उनके हृदय से निकली हुई दुआएं आपके जीवन को सुखमय बनाएंगीे। सुबह सवेरे पक्षियों को दाना-पानी मिलने पर इन पक्षियों की आत्मा खिल उठती है। परमात्मा भी प्रसन्न होते हैं कि मेरी सबल संतान ने मेरी निर्बल संतान की रक्षा की। साथ ही पशु-पक्षियों के प्रति करूणा भाव जागने से बालक सात्विक प्रवृत्ति के मित्रों के बीच रहता है। इसी क्रम में भारतीय संस्कृति की प्रासंगिकता व महत्ता बताने के साथ माता-पिता के चरण रज माथे से लगाने के पीछे का मनोविज्ञान बताते हुए उन्होंने कहा कि झुकना व्यक्ति को जीवन में आने वाली बाधाओं से मुक्ति दिलाता है।संस्था उपाध्यक्ष हीरो ज्ञानचंदानी ने प्रार्थना सभा में छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि मानव कल्याण की भावना तभी बलवती हो सकती है जब हम संसार के समस्त जीवों के लिए आत्मीयता का भाव हृदय में रोपित करें। इसके लिए हमें अपने आप-पास के निरीह पशु-पक्षियों को दाना-पानी देकर अपने मानव होने के दयित्व को निभाना होगा।गर्मी के दिनों में मनुष्य को ही नहीं मूक पशु-पक्षियों को भी बढ़ते तापमान से राहत की जरूरत होती है। इन विचारों के साथ छात्रों को संबोंधित करते हुए संस्था सचिव आदरणीय ए.सी. साधवानी ने अपने उद्बोधन में संस्था के उद्देश्यों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि विद्यालय बालकों को मात्र शिक्षित ही नहीं करता अपितु संस्कारित कर उनके व्यक्तित्व को उज्ज्वल बनाने हेतु सतत प्रयासरत है।कार्यक्रम के अंत में सभी छात्रों को एक किलो चावल, 2 सकोरे प्रदान किये गये जिससे वे अपने घरों में इन सकोरों में दाना और पानी रखकर मूक और निरीह प्राणियों की भूख और प्यास शांत करें। इस तरह उन्हें मूक जीवों के प्रति संवेदनशील बनने हेतु अभिप्रेरित किया गया।
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